तिरहुत शोध एवं विकास प्रतिष्ठान
" तिरहुत शब्द तीरभुक्ति अर्थात नदी का किनारा से व्युत्पन्न है "
- इसी भूमिका को निभाने के लिए वैशाली की पावन धरती से जहां भगवान श्री हरि विष्णु, भगवान श्री शिव शंकर, भगवान श्री परशुराम, भगवान श्री राम स्वयं इस धरती पर उतर कर इसे समय-समय पर गौरवान्वित करते रहें। विश्व इतिहास में वैशाली लोकतंत्र की जननी के रूप में स्थापित है। जिसकी भूमिका सिर्फ वैशाली ही नहीं बल्कि पूरा संसार इसी में समाहित और अपने भूमिका से पूरे ब्रह्मांड को प्रज्वलित करती रहती है।
- तिरहुत का क्षेत्र आज के वर्तमान उत्तर बिहार के सभी जिले आते थे, जो तिरभुक्ति के नाम से जाने जाते थे। इसलिए पुनः उसकी स्थापना और एक बेहतर राज्य पाठ का संचालन पूरे विश्व में स्थापित करने के लिए की तिरहुत शोध एवं विकास प्रतिष्ठान की स्थापना की गई है।
- बिहार में गंगा के उत्तरी भाग को तिरहुत क्षेत्र कहा जाता था। इसे तुर्क-अफगान काल में स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई बनाया गया। किसी समय में यह क्षेत्र बंगाल राज्य के अंतर्गत था। सन् १८७५ में यह बंगाल से अलग होकर मुजफ्फरपुर और दरभंगा नामक दो जिलों में बँट गया। ये दोनों जिले अब बिहार राज्य के अन्तर्गत है। वैसे अब तिरहुत नाम का कोई स्थान नहीं है, लेकिन मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों को ही कभी कभी तिरहुत नाम से व्यक्त किया जाता है।
- ब्रिटिस भारत में सन १९०८ में जारी एक आदेश के तहत तिरहुत को पटना से अलग कर प्रमंडल बनाया गया।
- तिरहुत बिहार राज्य के ९ प्रमंडलों में सवसे बड़ा है। इसके अन्तर्गत ६ जिले आते हैं:
- मुजफ्फरपुर जिला
- पूर्वी चंपारण जिला
- पश्चिम चंपारण जिला
- सीतामढी जिला
- वैशाली जिला
- शिवहर जिला
भारत में गंडक तथा गंगा नदियों से घिरा बिहार का उत्तरी मैदानी हिस्सा तिरहुत कहलाता है। इसके अन्तर्गत पश्चिमी चम्पारन, पूर्वी चम्पारन, मुजफ्फरपुर, सीतामढी, शिवहर तथा वैशाली जिला शामिल है। तिरहुत शब्द तीरभुक्ति अर्थात नदी का किनारा से व्युत्पन्न है। अतीत में राजर्षि जनक द्वारा शासित विदेह प्रदेश जिसमें हिमालय की तराई में पूर्वी नेपाल से लेकर गंगा के उत्तर का सारा मैदानी भाग शामिल था, तिरहुत कहलाया। बाद में वैशाली महाजनपद यहाँ के गौरवशाली इतिहास में जुड़ गया। जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर तथा बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध की चरणधूलि से यह भूमि आप्त है।
गंगा, गंडक तथा कोशी नदियों से घिरा सघन आबादी वाला मैदानी हिस्सा सन 1856 तक बंगाल प्रांत में भागलपुर प्रमंडल का अंग था। संथाल विद्रोह के पश्चात तिरहुत को पटना प्रमंडल में मिला दिया गया। 1875 में दरभंगा को तिरहुत से अलग कर स्वतंत्र जिला बना दिया गया। १९ वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इस क्षेत्र में अकाल पडने के बाद बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रू फ्रेजर को तिरहुत को अलग प्रशासनिक इकाई बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। जनवरी 1908 में भारत के तत्कालिन गवर्नर जेनरल की मंजूरी मिलने के पश्चात तिरहुत प्रमंडल बना जिसमें सारण, चम्पारन, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा जिलों को रखते हुए मुजफ्फरपुर को मुख्यालय बनाया गया।
वर्तमान में तिरहुत प्रमंडल भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र है। लगभग समूचा भौगोलिक क्षेत्र मैदानी है जिसमें हिमालय से उतरकर गंगा में मिलने वाली नदियों का जाल बिछा है। जमीन काफी उपजाऊ है इसलिए शीतोष्ण कटिबंध में उगने वाले लगभग सभी फसल यहाँ उपजाए जाते है। आम, लीची, केला तथा शहद के उत्पादन में तिरहुत का स्थान अद्वितीय है। उद्योगों का नगण्य विकाश तथा रोजगार के सीमित अवसर के चलते यहाँ से देश के अन्य हिस्सों मं काम के लिए लोगों का पलायन दर अधिक है। निम्न आर्थिक स्तर के बावजूद यह क्षेत्र बौद्धिक दृष्ट्कोण से जाग्रत तथा सांस्कृतिक रूप से चेतन है।
क्षेत्र
हमारा क्षेत्र
लक्ष्य
हमारा लक्ष्य
"तीरभुक्ति"
" राज्य की स्थापना"
सोच
सोच
तिरहुत शोध एवं विकास प्रतिष्ठान दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुनः स्थापित करने के लिए संकल्पित हैं। 16 महाजनपद की वास्तविक स्थापना को लेकर आगे बढ़ रही हैं।
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सदस्य
संस्थापक
श्री मनीष कुमार सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्षश्रीमती पायल सिंह
राष्ट्रीय उपाध्यक्षश्री गौतम चौधरी
राष्ट्रीय संयोजकश्री गोलोक बिहारी राय
राष्ट्रीय उपाध्यक्षसंपर्क
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